समाचार गढ़, 22 मई, श्रीडूंगरगढ़। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, श्रीडूंगरगढ़ की ओर से मालूभवन में शासनश्री साध्वी कुंथूश्री जी के सान्निध्य में तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमणजी की दीक्षा के पांच दशक पूरे होने पर दीक्षा कल्याण महोत्सव मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती अंजू पारख ने मंगलाचरण से की। इस अवसर पर अतिथियों का सम्मान सभा के सदस्यों द्वारा किया।
सबसे पहले उद्बोधन में साध्वी कुंथुश्री ने कहा कि आचार्य महाश्रमण विशेषताओं के समवाय है। विनम्रता, करूणा, अल्पभाषिता, पुरूषार्थ, आगमनिष्ठा, सत्यनिष्ठा आदि गुणों के कारण आचार्य महाप्रज्ञ ने अपना उत्तराधिकारी आपको प्रदान किया। 50 वर्षो के संयम जीवन में तीन देश 23 राज्यों में 55 हजार किलोमीटर पदयात्रा कर आपने जनजीवन को नशा मुक्त रहने की प्रेरणा दी है।
मुख्य अतिथि स्थानीय विधायक ताराचंद सारस्वत में इस अवसर पर कहा कि आचार्य महाश्रमण न केवल जैनों के लिए अपितु मानव मात्र कल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं। वे भारतीय संत परंपरा के एक उज्जवल नक्षत्र है।
विशिष्ट अतिथि विश्वकर्मा कौशल बोर्ड के अध्यक्ष राज्य मंत्री रामगोपाल सुथार ने कहा कि आचार्य महाश्रमण करुणा के महासागर हैं, उन्होंने अहिंसा यात्रा के माध्यम से गरीब की झोपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक नशा मुक्ति, नैतिकता, अहिंसा का परचम फहराया है। मुझे अनेक बार उनके दर्शनों का अवसर मिला। मेरी अभिवंदना स्वीकार करें।
उपखंड अधिकारी उमा मित्तल ने कहा कि आचार्य महाश्रमण जी समूचे देश-विदेश में पदयात्रा कर मानव जाति के उत्थान में लगे हुए हैं। मैं यह मंगल कामना करती हूं कि वह दीर्घकाल तक स्वस्थ रहे रहते हुए मानव मात्र की भलाई करते रहे।
इस अवसर पर तहसीलदार चौधरी राजवीर कड़वासरा व प्रधान सावित्री देवी गोदारा की भी उपस्थिति रही। सभा के अध्यक्ष विजयराज सेठिया, महिला मंडल से झींणकार देवी बोथरा, तेयुप के मनीष नौलखा, अणुव्रत समिति से सत्य नारायण स्वामी, तुलसीराम चोरड़िया, शुभम बोथरा ने भी अपना व्यक्तव्य दिया।
मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ चेतन स्वामी ने कहा कि महाश्रमणजी में श्रेष्ठ आचार्य के सभी गुण तो है ही, परन्तु वे श्रेष्ठ शासनकर्ता भी उन्होंने तेरापंथ धर्म संघ को बहुत ऊंचाई तक पहुंचाया है। वे बौद्धिक होने के साथ दीर्घ तपस्वी भी हैं। डाॅ स्वामी ने जोर देकर कहा कि जिन जातियों सम्प्रदायों के पास गुरु हैं, उन जातियों के लोग भौतिक और अभौतिक दोनों तरह की उन्नति का वरण कर रहे हैं। गुरु विहिन जातियां विभिन्न तरह के कालगत संक्रमणों से बच नहीं सकती। डाक्टर स्वामी ने अपना वक्तव्य मीठी राजस्थानी भाषा में दिया, उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा पर तेरापंथ के आदि आचार्य भीखणजी स्वामी का बहुत बड़ा उपकार है। उन्होंने राजस्थानी में 38 हजार पदों की रचना की। जयाचार्यजी से लेकर आचार्य श्री तुलसी तक के आचार्यों ने राजस्थानी में रचना कर जनभाषा का मान बढाया।
कार्यक्रम संयोजक मनोज पारख ने अपनी टीम के साथ कार्यक्रम की सफलता के लिए सराहनीय भूमिका निभाई। सभी ने इस आयोजन की सराहना की। पारख ने बताया कि इस कार्यक्रम में जैन समाज के साथ-साथ सभी समाजों के नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन पवन सेठिया ने किया। सुमित बरड़िया ने गीतिका की प्रस्तुति दी।कार्यक्रम के प्रायोजक चौथमल, बिमल कुमार, सुनील कुमार कोठारी रहे।
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