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यथार्थ, सिद्धांत और आराध्य पर हो आंतरिक भक्ति: आचार्य महाश्रमण

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महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण नित्य कर रहे महाश्रम, 16 कि.मी. का विहार कर पहुंचे लखासर,
लखासरवासियों ने आचार्यश्री का किया भावभीना अभिनंदन, आचार्यश

समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़ 22 जून। साधुओं के प्रतिक्रमण में पांच पाटियां हैं। इनमें पांचवीं पाटी में 24 तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। लोगस्स की पाटी में भी 24 तीर्थंकरों को वंदन किया गया है। इसमें एक-एक कर सभी तीर्थंकरों का नाम लिए जाते हैं। इनमें तीर्थंकरों की भक्ति मुखर होती है। नमस्कार महामंत्र में भी भक्ति का प्रयोग किया गया है। बाहरी भक्ति अर्थात् हाथ जोड़ना नमस्कार करना औपचारिक भक्ति का अपना महत्त्व हो सकता है, किन्तु अपने आराध्य के प्रति आंतरिक भक्ति का विशेष महत्त्व है। अंतरंग भक्ति का विशेष महत्त्व होता है। मनुष्य के भीतर आंतरिक भक्ति का विकास होता रहे, यह आवश्यक है। यथार्थ, अहिंसा, सिद्धांत, आगम वाणी और अपने आराध्य पर आंतरिक भक्ति का भाव हो तो कल्याण की बात हो सकती है। उक्त भक्ति की प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, सिद्ध साधक, अध्यात्म जगत के महासूर्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लखासर में स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की। अपनी अखण्ड परिव्राजकता को सार्थक बनाते हुए अध्यात्म जगत के महासूर्य बुधवार को प्रातः दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी के साधना केन्द्र से प्रस्थित हुए। आज भी आचार्यश्री एक प्रलम्ब विहार की ओर अग्रसर थे। आसमान में छाए बादलों के कारण सूर्य दृश्यमान नहीं हो रहा था। दो दिनों से हुई बरसात ने राजस्थान के किसानों को मानों गति प्रदान कर दी हो। प्रायः किसान अपने संसाधनों के साथ अपने खेतों की ओर अग्रसर दिखाई दे रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ अध्यात्म की लौ लेकर लोगों के मानस के अंधकारों को दूर करने के लिए आचार्यश्री महाश्रमणजी गतिमान थे। मार्ग में अनेक गांवो के लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त हुआ। श्रीडूंगरगढ़ से बढ़ती निकटता के कारण श्रीडूंगरगढ़वासी श्रद्धालुओं की उपस्थिति भी बढ़ती जा रही थी। आचार्यश्री के आगमन से प्रसन्न लखासरवासियों ने आचार्यश्री का भव्य स्वागत किया। लखासर स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में आचार्यश्री का मंगल पदार्पण हुआ। विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने आगे कहा कि यथार्थ, नियम और अपने आराध्य के प्रति भक्ति की भावना का विकास हो और अपने प्रण के प्रति भी भक्ति हो जाए तो कल्याण की बात हो सकती है। आराध्य का स्मरण, जप आदि करने का प्रयास हो। गुरु की आज्ञा के प्रति भी ऐसी भक्ति हो कि आज्ञा के विपरित कोई कार्य न हो। आचार्यश्री ने लखासर के मुनि मोतीजी स्वामी का स्मरण करते हुए कहा कि वे आचार्य जयाचार्य के युग के नामी संत थे। आज हम लोग लखासर आए हैं। उनका श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं।

कार्यक्रम में सोहनलाल दूगड़, तेरापंथ युवक परिषद-कटक के अध्यक्ष भैरवलाल दूगड़, मोहनलाल सिंघी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। लखासर के सरपंच गोवर्धन प्रसाद, विद्यालय के प्रधानाचार्य राजीव श्रीवास्तव व क्षेत्र के पूर्व विधायक मंगलाराम गोदारा ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। दूगड़ परिवार की महिलाओं तथा मोहनलाल सेठिया ने गीत का संगान किया।

  • Ashok Pareek

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