पाक्षिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न
श्रीडूंगरगढ़ शहर की साहित्यिक संस्था राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति के तत्वावधान में पाक्षिक साहित्यिक संगोष्ठी विद्वान साहित्यकार डाॅ मदन सैनी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि राजस्थान की सभी अकादमियों में अध्यक्षों की नियुक्ति से साहित्य जगत में कुछ अतिरिक्त सक्रियता और साहित्यिक गतिविधियां बढेंगी।
संगोष्ठी के प्रारंभ में विगत दिनों दिवंगत नाट्यकार और संस्कृतिकर्मी रणवीरसिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। साहित्यकार डाॅ चेतन स्वामी ने इस दौरान कलाओं एवं संस्कृति पर अभिव्यक्त रणवीरसिंह के विचारों को विस्तार से प्रस्तुत किया। रणवीरसिंह जी ने सांस्कृतिक ह्रास पर कहा था कि- किसी भी समाज की पारस्परिकता का ‘एडेसिव’ है- कल्चर। सब चीजें संस्कृति से जुड़ी होती हैं। संस्कृति ही सिखाती है कि भाषा का इस्तेमाल किस प्रकार होना चाहिए। राजस्थानी कथाकार सत्यदीप ने नट जीवन की एक मार्मिक कथा नटरू प्रस्तुत की। कथा एक जन जाति के अभिशापों को बहुत खुलासे के साथ अभिव्यक्त करती है। संस्था अध्यक्ष श्याम महर्षि ने अपनी ताजा लिखी हिन्दी कविताओं में, अर्जुन, नया महाभारत, तथा कुछ कहना है मुझे नाम से प्रस्तुत की। कविताओं में यथार्थ युगबोध की झलक मिलती है। इस अवसर पर बजरंग शर्मा तथा विजय महर्षि ने पाठकीय नजरिए से सभी रचनाओं पर अपनी टीप प्रस्तुत की। संगोष्ठी कोई दो घंटे तक चली।