मोमासर में तृतीय दिवस की भागवत कथा
चाह विहीन होने से ही आनंद की प्राप्ति- संतोष सागर
समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़/मोमासर। मोमासर के मायल परिवार की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस की कथा सुनाते हुए युवा संत संतोष सागर ने कहा कि सात दिनों में मरनेवाला परीक्षित अपने जीवन के लिए कोई प्रयास नहीं करते हैं बल्कि परम भागवत सुखदेवजी मुनि से एक ही प्रश्न करते हैं कि-मरनेवाले व्यक्ति के क्या कर्तव्य हैं? परीक्षित सत्य से परिचित होना चाहते हैं। हम असत्य से विलग होना ही नहीं चाहते।
कथा में आज विदुर-मेत्रैय के आध्यात्मिक प्रश्नोत्तर के माध्यम से युवा संत ने कथा करते हुए कहा कि हमारी आध्यात्मिक कथाएं हमें जीवन में दिशा देती है। विदुर ने पूछा कि जीवन में बिना बुलाए दुख क्यूं आता है? मेत्रैयजी ने कहा कि भौतिक सुखों की चाहना ही दुख का कारण है। चाह से ऊपर उठ जाने पर न सुख रहता है न दुख। केवल अखण्ड आनंद रह जाता है।
आज की कथा के दौरान जसनाथी संप्रदाय के लिखमादेसर हंसोजी धाम के संत सोमनाथ जी महाराज को व्यासपीठ की ओर से चादर भेंट की गई। इसी तरह विश्वकर्मा शिल्पकला बोर्ड के अध्यक्ष श्री रामगोपाल सुथार को दुपट्टा तथा भगवान श्री राम की तस्वीर भेंट कर सम्मान किया गया। आज की कथा में उपस्थित जनों की भारी उपस्थिति रही। कथा के प्रारंभ में साहित्यकार डाॅ चेतन स्वामी ने राजस्थान दिवस की शुभकामनाएं दी तथा घर परिवारों में राजस्थानी भाषा को बोलते रहने का आग्रह किया गया।