बच्चों की मौतों से जुड़ा सिरप विवाद : जांच जारी, परिजनों में आक्रोश
समाचार गढ़, 3 अक्टूबर 2025।
मध्यप्रदेश और राजस्थान में बीते कुछ दिनों से बच्चों की मौतों के मामलों ने खांसी के सिरप पर सवाल खड़े कर दिए हैं। छिंदवाड़ा जिले से लेकर राजस्थान के भरतपुर और सीकर जिलों तक, अब तक कुल मिलाकर करीब 11 बच्चों की मौत की खबरें सामने आई हैं। परिजनों का आरोप है कि बच्चों को खांसी की दवा पिलाने के बाद हालत बिगड़ी और उनकी जान चली गई।
कहाँ-कहाँ हुई घटनाएँ
मध्यप्रदेश (छिंदवाड़ा) : यहाँ कई बच्चों की मौत हुई, संख्या 6 से 9 बताई जा रही है।
राजस्थान (भरतपुर और सीकर) : इन दोनों जिलों से भी 2 से अधिक बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं।
किस दवा पर सवाल
स्थानीय रिपोर्टों में कुछ खांसी की दवाओं जैसे Coldrif, Nesto DS और Dextromethorphan युक्त सिरप का नाम सामने आया है। हालांकि, अभी तक किसी एक ब्रांड या बैच को निश्चित रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। नमूनों की जांच जारी है और लैब रिपोर्ट का इंतजार है।
परिजनों और प्रशासन के बीच मतभेद
कई परिजनों का कहना है कि बच्चों को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से सिरप मिला था और दवा पिलाने के तुरंत बाद उनकी तबीयत बिगड़ी। वहीं, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी रिकॉर्ड दिखाकर इन दावों को खारिज कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि उस संस्थान से संबंधित सिरप वितरित ही नहीं हुआ।
लक्षण और आशंका
बच्चों में उल्टी, तेज बुखार, पेशाब कम होना और किडनी फेलियर जैसे लक्षण देखने को मिले हैं। यह लक्षण उन अंतरराष्ट्रीय मामलों से मिलते हैं जहाँ पहले खांसी की दवाओं में डाईथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसी जहरीली मिलावटें पाई गई थीं। विशेषज्ञों का कहना है कि जांच पूरी होने तक किसी नतीजे पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी।
प्रशासनिक कार्रवाई
प्रभावित जिलों में खांसी के सिरप की खेप जब्त की जा चुकी है और बैच नमूनों को परीक्षण के लिए भेजा गया है। कुछ जगह डॉक्टर और फार्मासिस्ट के खिलाफ निलंबन जैसी कार्रवाई भी की गई है। स्वास्थ्य विभाग ने अभिभावकों से अपील की है कि वे बच्चों को बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा न दें।
फिलहाल स्थिति
इन मौतों ने स्थानीय स्तर पर दहशत और आक्रोश फैला दिया है। परिवार न्याय और सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, जबकि अधिकारी जांच रिपोर्ट आने तक किसी भी नतीजे पर न कूदने की अपील कर रहे हैं। अब सबकी निगाहें लैब जांच पर टिकी हैं, जिससे साफ हो सके कि बच्चों की मौत का असली कारण क्या था।










