श्रीडूंगरगढ़। कस्बे में आज से 21दिसंबर तक 9दिवसीय 108कुंडीय अति विष्णु महायज्ञ होगा। कस्बे के ताल मैदान में सुबह 11:30बजे से शुरू होने वाले महायज्ञ के आचार्य बीकानेर के पंडित जयकिशन पुरोहित होंगे। यह महायज्ञ वृंदावन के पगला बाबा नाम से प्रसिद्ध श्रीश्री 108 मधुसूदन दास त्यागी गिरनारी पगला के सान्निध्य में होगा। इससे पहले बाबा के सान्निध्य में 107यज्ञ हो चुके हैं जो 7, 11, 21, 51 कुंडीय थे। यह 108वां महायज्ञ है। इसलिए 108कुंडीय है।
यह रहेगा कलश यात्रा का रूट
श्रीडूंगरगढ़। आज बुधवार सुबह 9:15बजे आडसर बास स्थित राम मंदिर से कलश यात्रा शुरू होगी। व्यवस्थापक राजेन्द्र सोनी ने बताया कि कलश यात्रा में 201महिलाएं भाग लेगी जो अपने सर पर कलश लेकर यात्रा में पैदल चलेगी। उनके आगे सजी-धजी घोड़ियाँ और बग्घी चलेगी और उनके आगे बैंड चलेगा। बग्घी में पगला बाबा खुद विराजित रहेंगे। कलश यात्रा राम मंदिर से मुख्य बाजार, गौरव पथ पुरानी प्याऊ, सार्वजनिक पुस्तकालय के परिपार्श्व से होते हुए घुमचक्कर रोड़ पर आगे बढ़ते हुए एसबीआई बैंक और राजकीय चिकित्सालय के पास से होते हुए सारस्वत भवन और वहां से हाई स्कूल मार्ग होते हुए ताल मैदान तक पहुँचेगी।
3000 किलो (3हजार किलो) हवन सामग्री से लगेगी 3.60 लाख आहुतियां
श्रीडूंगरगढ़। यज्ञाचार्य जयकिशन पुरोहित ने बताया कि 14दिसम्बर को सुबह 11:30बजे अरणी मंथन के बाद शुरू हुए 108कुण्डीय अति विष्णु महायज्ञ में 21दिसम्बर पूर्णाहुति तक लगभग 3000किलो कुल हवन सामग्री से आहुतियां दी जाएगी। यज्ञाचार्य जयकिशन पुरोहित ने बताया कि 8दिनों में सुबह 11:30बजे से शाम 5बजे तक 3लाख 60हजार आहुतियां दी जाएगी। जिसमें 1200किलो हवन सामग्री, 600किलो जौ, 300किलो चावल, 150किलो चीनी और 500किलो देसी घी के साथ छैल छबीला, कपूर काचरी, जटामासी, कमल गट्टा, नागरमूथा, भोजपत्र, आहोबोर, गूगल सहित अनेकों औषधियों से युक्त कई किलो मिश्रण की आहुतियां दी जाएगी।
108 यज्ञवेदियों का वैदिक परंपरा सम्मत हुआ है निर्माण
श्रीडूंगरगढ़। यज्ञशाला में 108 यज्ञवेदियों का वैदिक परम्परा से विधान सम्मत निर्माण हुआ है। इनके निर्माण में एक ओर जहां ईंट, मिट्टी और गाय के गोबर का प्रयोग किया गया है वहीं दूसरी ओर निर्माण में वैदिक आधार को देखते हुए हवन कुण्ड निर्माण किया गया है। इस हवन कुंड के तीन भाग है जिसमें सफेद भाग विष्णु भगवान, लाल भाग ब्रह्मा और काला भाग शिव को दर्शाता है। इसके साथ ही हवन कुंड के बाहर की ओर बना योनि स्वरूप भाग भगवती गोरी को समर्पित होता है। विशेष बात यह है कि इस योनि भाग को लाल वस्त्र से पूर्णाहुति तक ढका हुआ रखा जाता है। हवन कुंड के अंदर मध्य भाग में नाभि का स्थान रखा जाता है। इसके साथ ही कंठ, अंडकोष आदि भी हवन कुंड के भाग होते हैं।
120 शास्त्र और यज्ञ में निपुण पण्डित रहेंगे मौजूद
श्रीडूंगरगढ़। यज्ञशाला में 108 यज्ञवेदियों का निर्माण हो चुका है। यज्ञाचार्य पुरोहित ने बताया कि कुल 120 विद्वान पंडित इस यज्ञ में भाग लेंगे। जिसमें प्रत्येक यज्ञवेदी पर एक पंडित विराजित रहेगा। और 5प्रधान पीठ में यज्ञाचार्य जयकिशन, ब्रह्मा में विमल, दृष्टा में मिलन, गणपत्य में नितेश और सदस्य में अरुण विराजित रहेंगें। बाकी 7पंडित यज्ञ की व्यवस्था में नियोजित रहेंगे।
यज्ञ में बैठने से पूर्व प्रायश्चित करवाया
श्रीडूंगरगढ़। इस महायज्ञ में भाग लेने वाले दंपत्तियों को पहले प्रायश्चित विधि से गुजरना होगा। इसके लिए आयोजन स्थल पर प्रायश्चित यज्ञ भी अतिरिक्त बनाए गए। यज्ञाचार्य जयकिशन ने बताया कि यज्ञ में सम्मिलित होने वाले दंपत्ति पहले प्रायश्चित करते है। इसके अंतर्गत दसविध स्नान किया जाता है। इसके तहत मंगलवार शाम 4बजे प्रायश्चित हवन किया गया। प्रायश्चित हवन करने के बाद भी ही व्यक्ति को महायज्ञ में बैठने की अनुमति होती है। इस हवन से शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक शुद्धि करवाई जाती है।