समाचार गढ़, श्री डूंगरगढ़ 21 जून। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, महान साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को गुसांईसर से लगभग अठारह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी की साधनाभूमि देराजसर में पधारे तो देराजसरवासी श्रद्धाभावों से आप्लावित हो उठे। अपने आराध्य को अपने आंगन में पाकर देराजसर का जन-जन पुलकित, प्रमुदित और प्रसन्न नजर आ रहा था। सोमवार की देर रात हुई बरसात के कारण गुसांईसर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर पानी से भर गया था। इस कारण मंगलवार की प्रातः विहार में थोड़ा विलम्ब जरूर हुआ, किन्तु अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी की संकल्पशक्ति के आगे मानों कोई भी विपदा नतमस्तक हो जाती है, और वह स्वयं मार्ग दे देती है। विलम्ब से हुए विहार के बाद भी आचार्यश्री आज प्रलम्ब विहार कर रहे थे। एक ओर लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी वहीं बरसात से स्थान-स्थान पर जमा पानी एवं कीचड़ यात्रा में मानों बाधक बन रहे थे। प्रतिकूलताओं में भी समत्व साधक आचार्यश्री महाश्रमण अविरल रूप से गतिमान थे। रास्ते में अनेक श्रद्धालुओं व ग्रामीण जनता को आशीर्वाद देते आचार्यश्री स्वल्पकालिक प्रवास के लिए आर.आर.बी. कालेज परिसर में पधारे। जहां कालेज परिसर से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान कर आशीष रूपी अभिसिंचन भी प्रदान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री पुनः गतिमान हुए। कुल अठारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री देराजसर में पधारे तो ग्रामीणों ने आचार्यश्री का सश्रद्धा स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी साधना केन्द्र में पधारे। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर तेरापंथ धर्मसंघ के सिद्ध साधक, अध्यात्म जगत के महागुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि शक्ति का गोपन नहीं होना चाहिए, बल्कि शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास होना चाहिए। शक्ति का विकास, शक्ति का अहसास और शक्ति को काम में लेने का प्रयास भी हो तो अच्छी बात हो सकती है। आज 21 जून है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की बात है। योग व्यापक शब्द है। अच्छा योग दिवस के दिन इस विषय पर चर्चा भी होती है। जगह-जगह लोग योग, प्राणायाम व व्यायाम आदि भी करते हैं। आदमी ऐसा प्रयास करे कि उसके प्रत्येक कार्य के साथ योग जुड़ जाए। चलने के साथ योग जुड़े कि अच्छे ढंग से चला जाए, देख-देखकर चला जाए। भोजन में भी योग हो कि अधिक राग से न हो, निंदा-प्रशंसा से नहीं, समता भाव से भोजन हो। स्वाध्याय भी योग है। चौबीस घंटे में थोड़ा समय योग लगाएं तो योग जीवन के साथ जुड़ सकता है। योग-साधना के द्वारा मन रूपी पानी में राग-द्वेष की तरंगे न उठें, आत्मा निर्मल रहे तो उसका साक्षात्कार भी हो सकता है। अध्यात्म जगत में भी योग-साधना की बात आती है। योग का अर्थ होता है जोड़ने वाला। जो मानव मन को मोक्ष से जोड़ दे, वह योग होता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र मोक्ष से जोड़ने वाली है तो यह भी योग है। शास्त्रों में अष्टांग योग की बात भी आती है-यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि। अहिंसा और सत्य भी योग है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज हम देराजसर आए हैं। यहां की ऐसी दिव्य और विशिष्ट साध्वी हुई हैं, दीर्घ तपस्विनी साध्वी पन्नाजी। वे अपने अंतिम समय में भी तपस्या में ही रत थीं। जहां तक मैंने उन्हें देखा उनमें सेवा और विनय का भाव भी था। वे एक विशिष्ट जोगण थीं। यहां के लोगों में भी उनका प्रभाव रहे, लोगों की चेतना निर्मल बनी रहे, सभी के जीवन में ध्यान, योग बना रहे, मंगलकामना। योग दिवस के दिन एक विशिष्ट योगिनी के साधनाभूमि में आचार्यश्री की कल्याणी वाणी से आशीर्वाद प्राप्त कर देराजसरवासी भावविभोर नजर आ रहे थे। आचार्यश्री ने लोगों को ध्यान, साधना व प्रेक्षाध्यान के कुछ प्रयोग भी कराए।
इस दौरान आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष जतन लाल पारख, महामंत्री पन्नालाल पुगलिया, स्वागता अध्यक्ष भीकमचंद पुगलिया जयपुर, सभा अध्यक्ष विजय राज सेठिया, वरिष्ठ उपाध्यक्ष तुलसीराम चौरडिया, सभा उपाध्यक्ष प्रमोद बोथरा, पंडाल व्यवस्था संयोजक सुमति पारख आदि पदाधिकारियों ने मंगलवार को भी देराजसर पहुंचकर गुरु दर्शन किए तथा यात्रा संबंधी मार्गदर्शन लिया। के अलावा श्री डूंगरगढ़ से तीन चारसो श्रावक श्राविकाओं ने देराजसर गांव पहुंचकर आचार्य प्रवर के दर्शन किए।