समाचार गढ़, 20 दिसम्बर, श्रीडूंगरगढ़ । कालूबास के नेहरू पार्क में श्री मोहनलाल सोनी (माहेश्वरी) परिवार द्वारा आयोज्य श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस महात्मा शिवेन्द्रजी महाराज ने लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की मनोहारी बाल लीलाओं का सरस वर्णन किया। उन्होंने कथा के प्रारम्भ में कहा कि जीव अगर भक्ति से ओतप्रोत होकर विचारों का मंथन करे तो उसे राम नाम की मणि प्राप्त होती है। कथाएँ इसलिए कही जाती हैं ताकि उन्हें सुनकर व्यक्ति को भक्ति अमृत की प्राप्ति हो। वह श्रेष्ठ श्रोता होकर आत्म अनुसंधान करे।
आपने कहा कि भागवत में वर्णित सूर्यवंश की कथा हमें आत्मबल की शिक्षा प्रदान करती है, वहीं चन्द्रवंश की कथा आत्म निग्रह सिखाती है। हमारी पौराणिक कथाएं प्रतीकात्मक हैं, कथाओं में वर्णित प्रतीकों को अर्थ सहित जान लेने से हमारी आध्यात्मिक दृष्टि विकसित होती है। कृष्ण लीला में कंस, अहंकार का प्रतीक है, नंद बाबा जीव के तथा यशोदा मइया बुध्दि की प्रतीक है। अहंकारी व्यक्ति के मन में सदैव मृत्यु भय छाया रहता है। कंस अपने को मृत्यु से बचाने के लिए आसुरी शक्तियों का आश्रय ग्रहण करता है, किंतु उसमें विफल रहता है। आज की कथा में गोवर्धन पूजा और छप्पन भोग तक की लीलाओं का वर्णन किया गया।
आज कथा के दौरान युवा संत शिवेन्द्रजी महाराज के विद्वान गुरुदेव जोगेन्द्राश्रम जी महाराज पधारे। आपका कथा पंडाल में भव्य स्वागत किया गया। तदुपरांत आपने अपने प्रवचन में कहा कि भागवत एक अलौकिक ग्रंथ है। यह मनुष्य कल्याण के रहस्यों से भरा हुआ है। रहस्य की बात है कि हम जितने भी भक्त चरित्रों को उनकी प्रसिद्धि के साथ याद करते हैं, उन्हें यह प्रसिद्धी भगवद् साक्षात्कार के बाद ही प्राप्त हुई। सूर, तुलसी आदि सभी भक्त परमात्मा की शरणागति से ख्यातनाम हुए। उन्होंने कहा कि प्रत्येक कथा का एक सिद्धान्त होता है, उस सिद्धान्त को समझना जरूरी है। कथा का सरस संयोजन डॉ० चेतन स्वामी ने किया।
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