कविता के मूल्य कभी नहीं बदलते
कविता विमर्श पर दो दिवसीय समारोह
समाचार-गढ़, श्रीडूंगरगढ़. कस्बे की राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति व राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को इक्कीसवीं सदी की राजस्थान की हिन्दी कविता विषय पर दो दिवसीय समारोह शुरू हुआ।
राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित संस्कृति भवन में आयोजित इस समारोह का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीपप्रज्वलन व माल्यार्पण के साथ हुआ।
समारोह के मुख्य अतिथि कवि नंद भारद्वाज ने कहा कि हिन्दी भाषा के उदय के साथ राजस्थान का हिन्दी काव्य सदैव ही उत्कृष्ट रहा है। इस प्रभावशाली विधा को लेकर हमारे अनेक कवियों ने राष्ट्रीय हस्ताक्षर के रूप में अपनी छवि कायम की है। उन्होंने कहा कि यों तो किसी न किसी रूप में भावना, संवेदना के काव्यमय संस्कार हर व्यक्ति के भीतर होते हैं पर वह इसे अपनी अभिव्यक्ति नहीं बना पाता है।
अध्यक्षता करते हुए राजस्थान अकादमी अध्यक्ष डाॅ. दुलाराम सारण ने कहा कि अकादमियों का रवैया लोकतांत्रिक होना चाहिए। हम अकादमियों के प्रचलित प्रतिमानों से आगे जाकर कार्य करने को प्रतिबद्ध हैं और अकादमी के माध्यम से संस्थापक जनार्दन राय नागर के सपनों को पूरा करना है।
समारोह में विषय प्रवर्तन करते हुए कवि आलोचक डाॅ. गजादान चारण ने कहा कि प्रकृति परिवर्तनशील है। इसलिए कविता की प्रकृति में परिवर्तन का होना कोई आश्चर्य नहीं है। कविता व्यक्ति के व्यक्ति होने की आंतरिक प्यास मिटाती है। और सच्चाई से रूबरू कराती है।
समिति अध्यक्ष श्याम महर्षि ने बताया कि संस्था का यह हीरक जयंती वर्ष है और इस वर्ष अब तक छह बडे आयोजन किए जा चुके हैं। विशिष्ट अतिथि परिवहन अधिकारी नेमीचंद पारीक ने कहा कि युवाओं को कविता आकर्षित करे तो हिन्दी कविता का महत्व और बढ़ेगा।
राजस्थान में इक्कीसवीं सदी की कविता और लोक का आलोक पर हुए पत्रवाचन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए लेखिका डाॅ. अनिता वर्मा ने कहा कि लेखक हमेशा चुनौतियों के सामने खड़ा होता है। कवि की दृष्टि जितनी विस्तृत होगी, वह चीजों को उतनी ही गहराई से पकड़ेगा।
पत्रवाचन करते हुए डाॅ. जगदीश गिरी ने कहा कि नब्बे का दशक बहुत से परिवर्तनों को लेकर आया और उन परिवर्तनों ने हमारे साहित्य को सब तरह से प्रभावित किया है। इक्कीसवीं सदी की कविता जनता के विरूद्ध खड़े तंत्र के प्रति प्रश्न करती नजर आती है। राजस्थान अकादमी के कोषाध्यक्ष कमल शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस दौरान पूर्व प्रधान दानाराम भामू, श्यामसुंदर आर्य, लाॅयन महावीर माली, बजरंग शर्मा, सत्यनारायण योगी, रामचन्द्र राठी, साहित्यकार डाॅ. चेतन स्वामी, मालचंद तिवाड़ी, नदीम अहमद नदीम, घनश्याम नाथ कछावा, श्रीलाल जोशी तेजरासर, नंदलाल सारस्वत हेमासर, संजू श्रीमाली, बृजरतन जोशी, रमेश भोजक, रेणुका व्यास, पूनमचंद गोदारा, महेश जोशी, डाॅ. कृष्ण लाल विश्नोई, गोविन्द जोशी, डाॅ. संतोष विश्नोई सहित तीस से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन कवि एवं साहित्यकार रवि पुरोहित ने किया।
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