सामाचार गढ़, 22 मई 2024। भागदौड़ से भरी और अक्सर तनावपूर्ण रहने वाली आज की जिन्दगी में एथेरोस्क्लेरोटिक कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (एएससीवीडी) का जोखिम बढ़ा हुआ है। एएससीवीडी की शुरूआत में थोड़े या ना के बराबर लक्षण होते हैं और इसलिए इसे अक्सर ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है। यह बीमारी गुजरते वर्षों के साथ धीरे-धीरे बढ़ती है और इससे दुनिया में लाखों लोगों को बड़ा खतरा है।
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एसोसिएट
प्रोफेसर डॉ. प्रीति गुप्ता के अनुसार, आईसीएमआर के हाल के अध्ययनों ने भारत की शहरी आबादी में हाई कोलेस्ट्रॉल के 25-30% और ग्रामीण आबादी में 15-20% मामले होने की बात कही है। ज्यादा आमदनी वाले देशों की तुलना में, भारत के 83% लोगों में बड़ी कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों और मौत की दर काफी ज्यादा है। लेकिन इन अनिश्चितताओं के बीच कुछ अच्छी खबर भी है: कोलेस्ट्रॉल, और खासकर बुरे कोलेस्ट्रॉल को मैनेज करने से बड़ा परिवर्तन आ सकता है।
एएससीवीडी क्या है और इसके संकेत और लक्षण क्या हैं?एएससीवीडी में कई तरह की स्थितियाँ होती हैं, जैसे कि आर्टरीज में प्लाक जमा होना, जिससे हृदय और मस्तिष्क जैसे जरूरी अंगों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। इस स्थिति को एथेरोस्क्लेरोसिस कहा जाता है और कोलेस्ट्रॉल जमा होने के कारण धीरे-धीरे आर्टरीज बंद होने लगती हैं। ऐसे में आर्टरीज कठोर हो जाती हैं और हार्ट अटैक, स्ट्रोक तथा हृदय की अन्य समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है। एएससीवीडी अक्सर धीरे-धीरे बढ़ता है और परेशानियाँ होने पर ही लक्षण उभरते हैं।
एएससीवीडी के संकेत और लक्षण
शुरुआती अवस्था के कुछ आम लक्षण हैं एंजिना, जिसे चेस्ट पैन भी कहा जाता है; सांस छोटी होना, थकान, चक्कर आना और धड़कन बढ़ना। हालांकि यह समझना महत्वपूर्ण है कि कोई जानलेवा स्थिति आने तक कुछ लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। इसलिये, बीमारी का जल्दी पता लगाने और सही समय पर दखल देने के लिये स्वास्थ्य की नियमित जाँच और पूर्व सक्रिय होकर कोलेस्ट्रॉल को जानना आवश्यक है। 40 साल से ज्यादा उम्र के हर व्यक्ति को एएससीवीडी होने का ज्यादा जोखिम है। हालांकि, यदि किसी को हाइपर कोलेस्ट्रॉलेमिया, ल्युपस, आदि जैसी कोई आनुवंशिक स्थिति है, तो उसे 30 साल की उम्र से पहले भी एएससीवीडी हो सकता है।
कोलेस्ट्रॉल के प्रकार, प्रभाव और दिल की सेहत पर असर
कोलेस्ट्रॉल के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनमें से एलडीएल (लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कोलेस्ट्रॉल को अक्सर ‘बुरा कोलेस्ट्रॉल’ कहा जाता है। क्योंकि आर्टरी की दीवारों में प्लाक के जमा होने में उसकी भूमिका होती है। जबकि एचडीएल (हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कोलेस्ट्रॉल को ‘अच्छा’ कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है, क्योंकि वह खून में से कोलेस्ट्रॉल की ज्यादा मात्रा को हटाने में मदद करता है। इस प्रकार वह एएससीवीडी से सुरक्षा देता है। एलडीएल और एचडीएल के बीच असंतुलन होने से एएससीवीडी होने का जोखिम बहुत प्रभावित हो सकता है। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के हाई लेवल से एथेरोस्क्लेरोसिस को बढ़ावा मिलता है, जबकि एचडीएल कोलेस्ट्रॉल के लो लेवल होने से शरीर ज्यादा कोलेस्ट्रॉल को निकाल नहीं पाता है और ऐसे में प्लाक जमा होने में तेजी आती है।
दिल की सेहत के लिए कोलेस्ट्रॉल की जांच क्यों जरूरी
एलडीएल लेवल को मैनेज करने के लिये कोलेस्ट्रॉल की जाँच करवाना महत्वपूर्ण है। 2019 में दुनिया में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) के कारण 32% मौतें हुई थीं और आकलन है कि 2030 तक हर साल ऐसी 23.6 मिलियन मौतें हो सकती हैं। ऐसे में कम उम्र से ही कोलेस्ट्रॉल की जांच करवाना महत्वपूर्ण है। इसकी शुरुआत 20 की उम्र से सही रहेगी। इस तरह से लोग अपनी सेहत को लेकर ज्यादा समझदार होंगे और बीमारियों की रोकथाम के उपाय भी करेंगे।
अपना टारगेट एलडीएल-सी जानना क्यों जरूरी
अलग-अलग लोगों के लिये जोखिम के कारकों और स्वास्थ्य-लक्ष्यों के आधार पर एलडीएल-सी के आदर्श स्तर में अंतर होता है। लेकिन आमतौर पर यह 100 mg/dL होना चाहिए, जबकि ज्यादा जोखिम वालों के लिये इससे भी कम। एलडीएल-सी पर नजर रखने के लिये खून की नियमित रूप से जाँच हो सकती है। यह मरीज के जोखिम और उपचार के आधार पर हर 3 से 12 महीने में होती है।
अपने लिपिड पर नजर रखना एएससीवीडी को मैनेज करने का आधार होता है। कोलेस्ट्रॉल लेवल्स को मैनेज करने के लिये दिल की सेहत को अच्छा रखने वाला आहार, नियमित व्यायाम और तनाव का प्रबंधन महत्वपूर्ण है। लेकिन यह समझना भी मायने रखता है कि एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को कम करने में दवाएं ज्यादा असरदार और तेज होती हैं। यह दवाएं ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करती हैं और थक्का बनने से रोकती हैं। एएससीवीडी के जोखिम को कम करने और इलाज के नतीजे बेहतर बनाने में ऐसी दवाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।