आम आदमी अगर स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहा तो आने वाले समय में अरोग्य की परिभाषा केवल किताबों में ही पढ़ने को मिलेगी।
श्री डूंगरगढ़। राजस्थान योग शिक्षक संघर्ष समिति के प्रदेश संरक्षक योगाचार्य ओपी कालवा ने निरोगी शरीर के लक्षणों की व्याख्या करते हुए बताया जीवन में वही व्यक्ति निरोगी रहता है जो प्रकृति के निकट रहता है। आज का मानव प्रकृति से इतनी दूर जा पड़ा है और इसका परिणाम इतना भयानक हुआ है कि आज सारे संसार में एक भी पूर्ण आदर्श निरोगी व्यक्ति का मिलना यदि असंभव नहीं तो अत्यंत कठिन अवश्य हो गया है। डॉक्टर फ्राइड ने एक जगह लिखा है कि मनुष्य शरीर में साधारण बीमारी का होना ही उसके निरोगी होने का प्रमाण है। जबकि प्राकृतिक चिकित्सकों के मन से वही व्यक्ति निरोगी कहलाएगा जिसका शरीर विकार अथवा विजातीय द्रव्य से सर्वथा रहित है और जिसकी समस्त इंद्रियों और अंग प्रत्यंग सुचारू रूप से अपना अपना कार्य संपादन करते हैं। साथ ही साथ जो शरीर मन और आत्मा तीनों से एक साथ ही स्वस्थ है। आयुर्वेद के ग्रंथ सुश्रुत संहिता में ऋषि चरक लिखते है । ” समदोषाः समाग्निश्च समधातु मल क्रियाः । प्रसन्नात्मेन्दियमनः स्वस्थ इत्यभिधीयते ।। ” भावार्थ : जिसके तीनों दोष वात , पित्त एवं कफ सम हो जठराग्नि सम ( न अधिक मंद , न अधिक तीव्र हो ) शरीर को धारण करने वाली सप्त धातुऐं ( रस , रक्त , मांस , मेद , अस्थि , मज्जा तथा वीर्य ) उचित अनुपात में हो मल मूत्र की क्रिया सम्यक प्रकार से होती हो और दसों इंद्रियां ( कान , नाक , आंख , त्वचा , रसना , गुदा , जननेद्रियां , हाथ , पैर व मन ) एवं इनका स्वामी आत्मा भी प्रसन्न हो तो ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्ति कहा जा सकता है। योगाचार्य ओपी कालवा ने जानकारी देते हुए निरोगी शरीर के कुछ लक्षणों के बारें में बताया जिनसे किसी व्यक्ति के उत्तम , मध्यम , स्वास्थ्य की जांच आसानी से की जा सकती है । 1. दिल गवाही दे कि शरीर में कोई रोग नहीं है और वह शत – प्रतिशत निरोग है । 2. कष्ट या व्याधि के संबंध में कोई जानकारी या अनुभव न हो । 3. जिसे समझने की आवश्यकता न हो कि उसके पास शरीर नाम की भी कोई चीज है । 4. जो काम के समय काम में और विश्राम के समय विश्राम में रस और आनंद ले सकता है । 5. जो सहनशील हो सख्त काम से न घबराता हो जो स्वतंत्र विचार वाला , निर्भीक , अध्यवसायी , दृढ़प्रतिज्ञ , आत्म विश्वासी , हंसमुख , दयावान , विनयी , दीर्घ जीवी हो । जैसे सत्य अहिंसा तथा प्रेम आदि का भंडार हो । 6. त्वचा मुलायम , लचीली , चिकनी , स्वच्छ और गर्म हो करने हो तथा खुजलाने से उसमें चिन्ह और लकीरे न बनें । रोम कूपों के स्थान सघन , सुंदर और मुलायम बालों से भरे हो , पसीने में किसी प्रकार की बदबू न हो सर्दी गर्मी तथा बरसात आदि ऋतुओं को बर्दाश्त करने की सहज क्षमता हो। वर्तमान समय में इन बातों से पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति स्वास्थ्य की दृष्टि से किस श्रेणी में आता है। कालवा ने योग चिकित्सा पद्धति को संसार की सर्वोपरी चिकित्सा पद्धति माना है। वर्तमान समय में योग की बढ़ती लोकप्रियता इसका जीता जागता प्रमाण है। अपनी दैनिक दिनचर्या में योग को अपनाएं ओर सौ सालों तक निरोगी बनाएं अपने इस बहुमूल्य शरीर को जो प्रकृति और परमात्मा की श्रेष्ठ रचना है।