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भागवत कथा में अमित पारीक का सम्मान किया गया, मन को बछड़े की भांति बांधें-शिवेन्द्रस्वरूप

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समाचार-गढ़, श्रीडूंगरगढ़। श्रीडूंगरगढ़ में आयोज्य नव दिवसीय भागवत कथा के अष्टम दिन कथा करते हुए युवा संत शिवेन्द्र स्वरूपजी ने कहा कि अनंत जन्मों के पाप मन को भगवान में लगाने नहीं देते। ज्यों ही जीव भगवान का भजन करने की चेष्टा करता है, मन में व्यर्थ चिंतन प्रारंभ हो जाता है। ऐसी स्थिति में मन को रोके रखने के लिए अपनी धारणा को दृढ़ करते रहें। आप नहीं हारेंगे तब मन भी अपनी उछलकूद बंद कर हार जाएगा। भजन में अभ्यास जरूरी है। शरीर सध जाएगा तो मन भी सध जाएगा। अनेक जन्मों के संचित कषायों से मुक्त होने के लिए आपने बछड़े के रूपक से बात को समझाया। बछड़े को बांधने पर वह खूंटा और रस्सी तुड़ाने की चेष्टा करता ही है। अगर अंतःकरण का परिशोधन करना है तो मन रूपी बछड़े को भजन रूपी मजबूत रस्सी से बांधना ही होगा।
भागवत कथा में संत जी ने कहा कि शरीर छह विकृतियों से युक्त होता है। शरीर का जन्म होता है, उसका परिवर्तन, परिवर्धन होता है, फिर क्षीण होकर नष्ट हो जाता है। आपने कहा कि दूसरे के अधिकार का हरण करने पर नर्क भोगना पड़ता है। दिए हुए दान और दूसरे के दान को कभी नहीं हड़पना चाहिए। भागवत में आज कृष्ण सुदामा मिलन तक की कथा सुनाई गई।
आज महाराज ने श्रोताओं को छह व्रत धारण करने की आवश्यकता जताते हुए कहा कि प्रति दिन स्नान, दो वक्त संध्या वंदन, निरंतर भगवन्न नाम का जप, देवताओं का पूजन, बलिवेश्व तथा अतिथि सत्कार का भाव रखना चाहिए। आपने कहा कि दरिद्रता का नाता कभी भी धन से नहीं होता, असल में दरिद्र वह व्यक्ति है जो भगवान का नाम नहीं लेता।
कथा के प्रारंभ में कथा आयोजक परिवार के अमित पारीक का असम प्रदेश ऑल इंडिया पारीक महासभा का अध्यक्ष मनोनीत होने पर गौहाटी पारीक समाज की ओर से शाॅल ओढाकर सम्मान किया गया। पचास से अधिक श्रोताओं का भी सम्मान किया गया।
कल कथा के विश्राम के उपरांत भागवतजी को गाजे बाजे के साथ पाराशर मंदिर पहुंचाया जाएगा। कथा में उद्घोषणाओं का संचालन चेतन स्वामी ने किया।

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