समाचार-गढ़, श्रीडूंगरगढ़। भागवत कथा के छठे दिन- दसम स्कंध की कथा सुनाते हुए ब्रहमचारी संत शिवेन्द्रस्वरूप ने कहा कि जिसने अपनी इन्द्रियां भगवान में लगा रखी है, वही व्यक्ति गोपी है। अहंकार ही कंस है। जीव ही वासुदेव है। ज्ञानेन्द्रियां- कर्मेंन्द्रियां ही पहरेदार हैं। भगवान की ओर अग्रसर होते ही हथकड़ियां- बेड़ियां स्वतः ही खुल जाती हैं। गोकुल इन्द्रियों का समूह है।
भक्ति रसम् पीवती सः गोपी।
संतजी ने कहा कि भागवत में हम देखते हैं सोलह कलानिधान श्रीकृष्ण जैसा कोई मनोचिकित्सक नहीं है। वे सबका यथायोग्य उपचार करते हैं। आज मोहग्रस्त अर्जुन तो चारों तरफ हैं, किन्तु उपचारक कृष्ण दिखाई नहीं देते।
महाराज ने षोडश संस्कारों को बचाने की अपील की। उन्होंने कहा समाज से संस्कार समाप्त हो जाने पर हमारी सभ्यता ही समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हमें रोटी और बेटी को बचाने की जरूरत है। रोटी का तात्पर्य भोजन से है। भोजन दूषित होगा तो विचार और भावना तो दूषित होनी ही है। बेटी बचाने का तात्पर्य बेटी को संस्कारित करने की आवश्यकता है। संस्कारित बेटी जीवनभर अपने परिवार को बचाए रखती है। संस्कारों के साथ आपने राजस्थानी भाषा के बचाव की बात भी कही और अपील की कि हमें अपनी भाषा बचाने तथा उसे मान्यता दिलवाने के लिए सारे प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा को भूलना किसी अपराध से कम नहीं है।
आज की कथा में विस्तार से श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का मनोहारी वर्णन किया। कथा के प्रारंभ में स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष मानमल शर्मा तथा कुछ पार्षदों को दुपट्टा पहनाकर स्वागत किया गया। गिरधारीलाल मुकेशकुमार पारीक द्वारा आयोजित इस भागवत कथा के छठे दिन भी भारी उपस्थिति रही। छठे दिन की कथा के विश्राम पर मुकेशकुमार अमितकुमार ने उपस्थित जनों का आभार ज्ञापित किया। संयोजन चेतन स्वामी ने किया। आज कथा में छप्पन भोग का प्रसाद लगाकर वितरित किया गया।
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