समाचार-गढ़, जयपुर। विद्याधर नगर के सेक्टर 7 में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन सनातन धर्म यात्रा समापन पड़ाव में युवा संत संतोष सागर ने कहा कि हमने भौतिक उपलब्धियां तो बहुत प्राप्त करली हैं, लेकिन शास्त्रीय विधान तेजी से लोप हो रहा है। बालक के जन्म के तत्काल बाद ही उसके कान में गायत्री मंत्र का उद्घोष करना चाहिए। ऐसा बालक संस्कारवान बना रहता है। उन्होंने कहा कि दान का भी अपना विधान होता है। दान देनेवाले को अभिमान नहीं होना चाहिए और लेनेवाले को संकोच नहीं होना चाहिए इसलिए दान हमेशा छुपाकर किया जाना चाहिए। भगवद् अवतार का अभीष्ट बताते हुए आपने कहा कि भगवान अविद्या का नाश करने के लिए अवतरण करते हैं।
हर गृहस्थी को यह सावधानी रखने की आवश्यकता है कि घर में अविद्या का प्रवेश नहीं होना चाहिए।
आगामी 28 फरवरी को यहां भव्य गीता महोत्सव में भाग लेने पच्चीस जिलों से आए श्रद्धालुगण श्रीमद्भगवद्गीता को पाठ्यक्रम में लागू करने के लिए प्रांत के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। युवा संत ने अपना मंतव्य दोहराते हुए कहा कि वे जब तक राजस्थान के हर विद्यार्थी के बस्ते तक गीता नहीं पहुंचा देंगे, तब तक अपने लक्ष्य का त्याग नहीं करेंगे। कथा में पथमेड़ा गौशाला से दर्शनानंदजी महाराज का आगमन हुआ।