समाचार गढ़, 21 दिसम्बर 2024, श्रीडूंगरगढ़। कालूबास के सोनी (माहेश्वरी) परिवार द्वारा नेहरू पार्क में आयोजित भागवत सप्ताह के छठे दिन श्रीकृष्ण एवं रुकमणि का विवाहोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया गया। गाजे-बाजे से श्रीकृष्ण की बारात आई। बारात का स्वागत रेंवतमल, मुरलीधर, सत्यनारायण, विनीत सोनी परिवार के स्त्री-पुरुषों ने किया।
कथा के प्रारम्भ में युवा संत शिवेन्द्र स्वरूपजी महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत समस्त पापों को हरण करनेवाला ग्रंथ है। हर सनातनी को इसके महत्व को जानकर अध्ययन करना चाहिए। वेदों के चार महा वाक्यों में ‘तत्वमसि’ से ‘अहम् ब्रहमास्मि’ तक एक तात्विक दूरी है भागवत उस दूरी को पाट देती है। वेदांत भारत का प्रमुख दर्शन रहा है। आचार्य शंकर ने वेदांत के ग्रंथ विवेक चूड़ामणि में मानव कल्याण के चार सूत्र प्रदान किए हैं, वे हैं विवेक, वैराग्य, षट् सम्पति और मुमुक्षत्व। इन्हें अपनाकर कोई भी व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
भागवत के दसवें स्कंध में वर्णित ‘रास लीला’ का निरुपण करते हुए शिवेन्द्रजी ने कहा कि ‘रास’ कोई भोग का विषय नहीं है। जीवात्मा और परमात्मा के निर्द्वन्द्व महामिलन का नाम ही रास है। रास पंचाध्यायी में वर्णित लीला निवृत्ति मूलक है। भगवान ने गोपियों के त्याग-वैराग्य तथा उनके समर्पण को स्वीकार किया। भगवान दिखाना चाहते थे कि भक्त की भगवान के प्रति विह्वलता और प्रेम निष्ठा गोपियों जैसी होनी चाहिए। भगवान के प्रति सबकुछ त्यागने का भाव ही गोपी-भाव है। भक्त में भक्ति का भी अहंकार नहीं होना चाहिए, नहीं तो भगवान अन्तर्धान हो सकते हैं।
कृष्ण चरित का विवेचन करते हुए संत जी ने कहा कि श्रीकृष्ण का चरित विरल है, उनके चरित्र के समस्त गुणों की व्याख्या संभव नहीं है, आधुनिक भाषा में कहें तो वे मनोचिकित्सक, इंजीनियर और जीवन प्रबंध के सभी गुणों से अभिमंडित थे।
संयोजक डाॅ चेतन स्वामी ने अपने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि धार्मिक और पौराणिक कथाएं हमें जीवन को सुंदर ढंग से जीने के आध्यात्मिक सूत्र प्रदान करती हैं। सांयकाल को गायक हनुमान कुदाल के संयोजन में सुंदरकांड का पाठ रखा गया।
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