समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़। मोमासर में मायल परिवार की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के विश्राम दिवस को युवा संत संतोष सागर ने उधव चरित्र की कथा सुनाते कहा कि उधव की भांति हम भी ज्ञान के अहंकार में भीगे रहते हैं, पर गोपी भाव के बिना भगवद् दर्शन संभव नहीं। हृदय में गोपियों जैसा सारल्य और प्रेम होना आवश्यक है। महाराज श्री ने कहा कि वृन्दावन कोई भूमि मात्र नहीं है, वह तो प्रेम का पिंड है। भगवान के धाम की क्या महिमा। जिसके हृदय में मानव मात्र के लिए प्रेम नहीं वह कैसा इन्सान है।
आज की कथा के प्रारंभ में महाराज श्री ने कहा कि जीवन का प्रथम और अंतिम सांस महत्वपूर्ण है। जीवन का आरंभ और अंत भगवान के निमित्त हो। आपने कहा कि हर व्यक्ति यह तो सोचता है कि जीवन कितना जीना है। पर यह नहीं सोचता कि कैसे जीना है?
मनुष्य का जन्म परमार्थ के भाव से परिपूरित होना चाहिए। यशोदा ने कृष्ण को परमार्थ के कारण मथुरा में जाने दिया, अन्यथा उनका व्यैक्तिक संकुचित प्रेम होता तो वे कृष्ण को क्यूं जाने देती।
कथा समापन के उपरांत संत शिवनाथ महाराज, मनोहरनाथ महाराज तथा मोमासर के उपसरपंच जुगराज संचेती तथा अन्य अतिथियों का सम्मान किया गया। कथा में सहयोगी सज्जनों का आभार ज्ञापित किया गया।
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