Nature Nature Nature Nature Nature Nature Nature श्रीडूंगरगढ़ के नेहरू पार्क में भागवत कथा का तीसरा दिन,विरक्ति ही भगवद् कृपा है- शिवेन्द्रस्वरूप - Homepage
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श्रीडूंगरगढ़ के नेहरू पार्क में भागवत कथा का तीसरा दिन,विरक्ति ही भगवद् कृपा है- शिवेन्द्रस्वरूप

नेहरू पार्क में तृतीय दिवस की भागवत कथा

समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़। कालूबास स्थित नेहरु पार्क में गिरधारीलाल मुकेशकुमार पारीक द्वारा आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत महा कथा के तृतीय दिवस सृष्टि क्रम की कथा के अन्तर्गत कपिलोपाख्यान से लेकर पुरन्दरोपाख्यान तक की कथा का सुन्दर विवेचन करते हुए विरक्त संत शिवेन्द्र स्वरूप ने कहा कि पुरंजन जीवात्मा का ही प्रतीक है, जो नौ द्वारे की नगरी में भटक रहा है।
विशुद्ध लोकभाषा राजस्थानी में कथा करते हुए युवा संत ने कहा कि- आ देह, जीवण धन जगदीश्वर ने हासल करण तांई मिल्योड़ी है, पण अंत राम कह आवत नाहिं सूं ओ सहजां ई नरक रो दरवाजो सोध लेवै। आपने कहा कि हमें कैसे पता चले कि हमारे ऊपर भगवद् कृपा प्रारंभ हो रही है? घर में धन- धान्य, ऐश्वर्य, पुत्र पौत्रादि की प्राप्ति से हम समझ लेते हैं कि ईश्वर की कृपा हो रही है, जबकि अध्यात्म और शास्त्र ऐसा नहीं कहते। ऐश्वर्य की प्राप्ति पूर्व जन्मों के सत्कर्मों का शुभ फल है। अगर मन बार बार ईश्वर की शरणागति में जा रहा है और संसार के सारे ऐश्वर्यों से विरक्ति हो रही है तो समझना चाहिए, भगवद् कृपा प्रारंभ हो गई।
बहुधा लोग कहते हैं कि उनका मन भगवान में नहीं लगता तो इस बात पर मन में दुख उपजना चाहिए कि क्यों नहीं लग रहा, निरंतर अभ्यास और निदिध्यासन से अपने चित्त को भगवान में ठहराएं।
आपने इस बात पर जोर दिया कि गुरू बनाने की ललक से अधिक स्वयं को सुयोग्य शिष्य बनाने की चेष्टा करें। गुरु तो बहुत मिल जाएंगे, पर सुयोग्य शिष्यों की बहुत कमी है।
भागवत के अनेक अनछुए गूढ तात्विक प्रसंगों को आपने राजस्थानी में बहुत सरल तरीके से समझाते हुए उपस्थित भागवत पिपासुओं का मन मोह लिया।
कथा के प्रारंभ में डाॅ चेतन स्वामी ने हमारे जीवन में मोबाइल के अत्यधिक दखल पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि हम एक यंत्र की दासता के शिकार होकर अनिद्रा, दुश्चिंता, क्रोध और अवसाद के शिकार होते जा रहे हैं। मोबाइल एडिक्शन के कारण चैन और नींद के घंटों में भी कटौती करते जा रहे हैं। आनेवाले दिनों में हमें डिजिटल व्यसन मुक्ति केन्द्रों की आवश्यकता पड़ेगी। एक दुखद, रुखा, धर्म और संस्कृति से विच्छिन्न समय सामने खड़ा दिखाई दे रहा है।
भागवत कथा सुनने विभिन्न प्रांतों से पधारे श्रद्धालुजनों तथा संत शिवेन्द्रजी की माताश्री का सम्मान दुपट्टा पहनाकर किया गया। तीसरे दिन भी श्रावक-श्राविकाओं से समूचा पार्क क्षेत्र भरा रहा।

  • Ashok Pareek

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