
श्री आशीर्वाद बालाजी मंदिर प्रांगण मेंभागवत कथा का तृतीय दिवस, माता-पिता का जीवन प्रेरणीय होने पर ही संतति का जीवन सुन्दर बनेगा– संतोष सागर जी महाराज
समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़। श्री आशीर्वाद बालाजी मंदिर प्रांगण में आयोजित सप्त दिवसीय श्री मद् भागवत कथा के तृतीय दिवस की कथा सुनाते हुए युवा संत संतोष सागर महाराज ने कहा कि हम प्रति दिन इक्कीस हजार छह सौ श्वास लेते हैं। प्रभु प्रदत्त इन श्वासों से ही तो यह जीवन है। चौबीस घंटे में सांसो जितने नामों का स्मरण अवश्य करना चाहिए। यही भक्त की कृतज्ञता है। अपनी श्वासों पर भगवान का नाम लिख दीजिए।
महाराज श्री ने कहा कि हमें अपनी श्वासों से सजे हुए जीवन को कैसे जीना है, इस पर बहुत विचार करने की आवश्यकता है। आज हम समय के जिस मोड़ पर हैं, वहां किसी को शब्दों से अधिक नहीं समझा सकते हैं। हमारे बच्चे हम जैसा कहेंगे, वैसा नहीं करेंगे। हम जैसा करेंगे, बच्चे वैसा ही सीखेंगे। पर उपदेश कुशल बहुतेरे। उपदेश देना सरल है, सद राह पर चलना कठिन है। भागवत के मुख्य पात्र परीक्षित के जीवन पर दृष्टि डालें, जीवन जीने की चाह नहीं है, पर कल्याण की चाह है।
महात्मा विदुर और विदुरानी की कथा सुनाते हुए आपने कहा कि भगवान प्रेम से रीझते हैं और भाव से राजी होते हैं।
कथा यजमान जगदीश जी गुरावा के सौजन्य से यहां आशीर्वाद बालाजी मंदिर का निर्माण कराया गया है, किन्तु उन्होंने इस मंदिर को समाज को समर्पित कर दिया है। मंदिर प्रांगण में नव कुण्डीय यज्ञ भी चल रहा है।
कथा संयोजक डाॅ चेतन स्वामी ने कहा कि आध्यात्मिकता के मनोरथों को जब तक विवेक से नहीं जानेंगे, अध्यात्म चित्त में नहीं उतरेगा। भगवत कथाएं केवल मन-विलास की चीज नहीं। जीवन को सर्वांग सुन्दर बनाने का उपचार हैं।





