मोमासर पर ताना गया कलाओं का वितान
● चेतन स्वामी
14 और 15 अक्तूबर को श्रीडूंगरगढ़ तहसील के एक गांव मोमासर में नृत्य, वादन, गायन तथा अनेक दूसरी कलाओं का पूरे विस्तार के साथ अविस्मरणीय मेला लगा। मोमासर उत्सव के इस आयोजन के सभी रंगों को पकड़ पाना सहज नहीं है। विगत दस वर्षों से कोरोना काल के दो वर्ष छोड़ कर प्रति वर्ष हो रहे इस लोक-उत्सव के लिए एक तरफ आतिथ्य को आतुर पूरा गांव तथा दूसरी ओर कलाओं से नाता रखनेवाले रसिक इसकी बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं।
उत्सव में एक इठलाता उछाव और उमंग का भाव रहता है। वह यहां गांव के कोने खुदरे में नजर आ रहा था। दो सौ से अधिक कला वैभिन्य रखनेवाले कलाकारों का यह जमावड़ा, आपको अनेक संतृप्तियों के साथ लुभा रहा था। जयपुर के सांस्कृतिक संस्थान जाजम फांऊडेशन की ओर से आयोजित इस उत्सव के मुख्य सौजन्यकर्ता हर वर्ष की भांति गांव का ही सुरवि चैरिटेबल ट्रस्ट तथा संचेती ग्रुप था। राजस्थान पर्यटन विभाग तथा राजस्थान ग्रामीण आजीविका परिषद् भी प्रायोजक थे, वहीं डांसिंग पिकाॅक एवं मरकरी नामक दो संस्थाओं की भी आयोजन में सहभागिता रही।
अगर लुप्त होती जा रही ठेठ ग्रामीण अनघड़ कलाओं में कोई मनोरंजन खोजनेवाली आंख रखता है तो यह उत्सव भरपूर मनोरंजन देनेवाला भी रहा। विभिन्न सहायता समूहों द्वारा बनाई कलात्मक वस्तुओं का एक अलग आकर्षण था। दस्तकार भाई बहिनों ने अपने उत्पाद के तीस से अधिक स्टाल लगाए। मोमासर उत्सव के संयोजक कलामर्मज्ञ विनोद जोशी का संकल्प रहा है कि वे प्रोफेशनल स्तर तक नहीं पहुंच पाई कलाओं और कलाकारों को भरपूर प्रोत्साहन के साथ मंच प्रदान करते हैं। इसमें भी कलाओं के प्रस्तुतीकरण में यथा संभव माइक जैसे उपकरणों को भी वे आडम्बर मानते हैं, इसलिए मोमासर उत्सव के समूहों में सम्पन्न अधिकांश सत्रों में माइक से परहेज किया गया। गायक, वादक आपके ठीक सामने गा गुनगुना रहे थे। मादल, ढाक और थाली वादन के साथ गवरी नृत्य में प्रस्तुतियां देनेवाले भील प्रभुलाल, हीरालाल के वादन को बिना माइक के पांच किलोमीटर तक सुना जा सकता है। दोनों दिन का आगाज शास्त्रीय संगीत के साथ योगा, तत्पश्चात हरजसों से हुआ। ये प्रातःकालीन सत्र आपके पूरे दिन की प्रफुल्लता के लिए एक मंत्र की भांति थे। यह आयोजन गांव के निकट सुरेन्द्र पटावरी के खेत में किया गया। खेत में ही रात्रि में मधम रोशनी के बीच रावण हत्था के साथ पाबूजी की पड़, अलगोजा वादन, सुरिंदा वादन ने निकट पडौस के अनेक खेतों की तन्हाइयों में मधुरे सुर भरने का काम किया। पुष्कर के नाथूजी के नगाड़े की गूंज मोमासर के निकट के सतासर, लालासर गांवों तक सुनाई दी। नाथूजी के चार विशालकाय नगारों ने राजाओं के काल में युद्ध के समय बजनेवाले निशानों की याद ताजा करदी।
गांव के मध्य जयचंदलाल पटावरी की सजीधजी तथा चित्रांकित हवेली में दोनों दिन बाददोपहर के सत्रों में पहले दिन जन्म, मरण, परण के अवसरों पर अपनी जजमानी प्रथा का सांगीतिक अनुसरण करनेवाले मांगणियार कलाकारों ने अपने वाद्य यंत्र कमायचा की ऐसी सुर लहरियां छेड़ी जैसे हजारों भंवरे भिनक पड़े हैं। कमायचा सारंगी से भिन्न है, पर मधुरता में उन्नीस नहीं। अस्सी वर्षीय हाकमखां की वाद्यकला ने सभी को आश्चर्य चकित कर दिया। मौलीसर की भंवरीदेवी ने लोकभजनों में अपने गले का लोहा मनवाया। साठ पार की ढलती वय में भी उसने अपने सुरों को बिखरने नहीं दिया।
मोमासर गांव के संस्थापक मूमाजी मोहिल यहां भोमियाजी के रूप में सुपूजित हैं। पुष्कर के श्रीवैष्णव 11 पुजारियों ने अनूठे ढंग से महाआरती की, जिसमें गांव के कृतज्ञ जन सम्मिलित हुए। हजारों दीपकों की यह आरती गांव के लिए पहला अनुभव थी।
द्वितीय दिवस के जयचंदलाल पटावरी हवेली के सत्र में लुप्त प्रायः वाद्ययंत्र इकतारा पर दो वयोवृद्ध बहनों मालीदेवी- जमनादेवी ने रातीजगों में गाये जानेवाले हरजसों की याद दिलाई। हाकमखां मांगणियार और उनके सुपुत्रों ने वैवाहिक अवसरों पर गाए जाने वाले पारंपरिक जांगड़े सुनाए। आधुनिक बन्ना गीत इन जांगड़ों के ऋणी दिखाई देते हैं। मांगणियारों की समृद्ध गायन परंपरा को लोगों ने जाना।
महोत्सव का समापन कार्यक्रम मोमासर गांव के ऐतिहासिक तालाब के लम्बे चौड़े आगोर में रात्रि 9 बजे से अबाध अर्द्ध रात्रि सवा दो बजे तक चला। चरी नृत्य, नाथूजी का नगाड़ा वादन, गुलाबो की तीन पीढियों का कालबेलिया नाच, सुनील- राधा का भवाई नृत्य, जुम्मन खां का भपंग वादन, पाबूसर का चंग दल, सीमा मिश्रा के लोकगीतों ने दसों हजार श्रोताओं को हिलने नहीं दिया। बृज के फूलडोल से कार्यक्रम का समापन हुआ।
मोमासर उत्सव के सम्बन्ध में इन्होंने ये कहा–
•• “मोमासर उत्सव पुरातन संस्कृति का नवोदय है। कार्यक्रम की तिथि घोषित होते ही गांव में उमंग का वातावरण बन जाता है। असल में यह गांव के प्रत्येक व्यक्ति का आयोजन है। “
विद्याधर शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता
•• “प्रशासनिक रूप से ग्राम पंचायत अपनी पूरी ऊर्जा से मोमासर उत्सव के दौरान साफ सफाई, विद्युत व्यवस्था तथा आगंतुक मेहमानों को ठहराने की व्यवस्था का जिम्मा लेती है।”
जुगराज संचेती, उप- सरपंच, मोमासर
“इस आयोजन का आनंद लेने के लिए दुबई से आया हूं। कलाओं के प्रति जागरूक होने का संदेश देता है, यह आयोजन। हमारी हवेली में मुख्य आयोजन होता है, इसलिए एक सुखद अहसास रहता है।”
राकेश पटावरी, दुबई प्रवासी
“मोमासर के प्रत्येक व्यक्ति का फर्ज बनता है कि वह इस आयोजन को और अधिक सुन्दर बनाने के लिए अपने आतिथेय कर्तव्य का और आगे बढकर निर्वाह करे। संस्कृति को बचाने के लिए ऐसे आयोजन अनिवार्य हैं।”
अरुण संचेती, संचेती ग्रुप, प्रायोजक
“जिस धरातल से कलाएं जन्म लेती है, वहां उनके प्रदर्शन नहीं होंगे तो आगे कलाकर कैसे पैदा होंगे? यह शहर से अलग कला की दुनिया है। ऐसे आयोजनों की अनिवार्यता समझनी होगी।”
अशोक राही- व्यंग्य एवं नाट्य लेखक-निर्देशक
“मोमासर उत्सव का एक बड़ा उद्देश्य यह भी है कि हम अपने कलाकारों को निकट से जानने का यत्न करें। हमारा प्रयास है कि हम सामान्य जन और कलाकारों के मध्य एक योजक कड़ी बनें। 300 सौ गांवों में अब तक पन्द्रह हजार कलाकारों की तलाश कर उन्हें मंच दिया जा चुका है।”
विनोद जोशी, जाजम फांऊडेशन, जयपुर