समाचार-गढ़, श्रीडूंगरगढ़। एक तरफ जहां सरकारों द्वारा “पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ” का नारा लगाने के साथ हजारों पेड़ लगवाकर लाखों के खर्चें किये जाते हैं वहीं श्रीडूंगरगढ़ कस्बे में वनविभाग की भूमि पर लगे हजारों पेड़ खुद को वनमाफ़ियों से बचाने की गुहार लगा रहे हैं। श्रीडूंगरगढ़ कस्बे के राष्ट्रीय राजमार्ग 11 के दक्षिण दिशा में स्थित वन विभाग की भूमि पर लगे हुए विलायती कीकर, खेजड़ी, रोहिड़ा आदि पेड़ वन माफियों द्वारा काटे जा रहे हैं और हजारों पेड़ों को काटकर उनसे कोयला बनाकर बेचा जा रहा है। बड़ी हैरानी की बात यह है कि वन विभाग की नाक के तले इन पेड़ों की बलि दी जा रही है और उनके कटने पर पेड़ों का करुण क्रंदन मशीनों की आवाज में दब जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग से दक्षिण दिशा में लगभग 1किमी आगे जाकर देखा तो वन विभाग की जमीन पर हजारों पेड़ काटकर रखे हुए थे और उनके टुकड़े करके उन्हें जलाया जा रहा था। चारों तरफ कोयला, पेड़ों को काटने वाले यंत्र, कोयले की राख और जलने से बचे हुए पेड़ों का जखीरा। वहां काम करने वाले श्रमिकों से जब पूछा गया तो श्रमिक इमरती देवी और महेंद्र नाथ ने चौंकाने वाली बात बताई। जिन्हें सुनकर लगा कि बड़े अधिकारी भी इस काले धंधे से अछूते नहीं है।
ट्रेक्टर, आरा मशीन और भी मशीनें दे रही है अंजाम, खेद है कि प्रशासन बेखबर है
श्रीडूंगरगढ़। वनविभाग की भूमि पर पिछले डेढ़ महीने से हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं। रात के अंधेरे में पेड़ काटे जाते है और फिर दिन भी उन्हें जलाकर कोयला बनाया जाता है। भास्कर ने मौके पर 60कट्टे कोयले देखे और कुछ कोयले रेत के 5ढेर में दबे हुए थे। एक वनप्रेमी ने बताया कि हमें इन मशीनों की रात को आवाज सुनाई देती थी परन्तु कभी इस पर गौर नहीं किया। और दुःख हो रहा है कि लगभग 5हजार पेड़ इन स्वार्थी लोगों के कारण जलकर खत्म हो गए। खेद की बात यह भी है कि वन विभाग के कार्यालय से नाममात्र की दूरी पर यह काम हो रहा है और इन पेड़ों का दर्द उन्हें वन रखवालों को सुनाई तक नहीं दे रहा है। क्योंकि इन पेड़ों के कोयलों से उनकी जेबें भी काली हुई है।
मेड़ता सिटी के लोग, आधार कार्ड रतनगढ़ का, दुहाई गरीबी की, हाथ बड़े लोगों का
श्रीडूंगरगढ़। वन विभाग की भूमि पर जब मौका देखा गया तो सामने आया कि वहां काम करने वाले श्रमिक मेड़ता सिटी के हैं परन्तु उनके पास आधार कार्ड रतनगढ़ का है। और एक पूरा ग्रुप इस पेड़ काटने की घटना को अंजाम दे रहा है। जब इन लोगों से बात हुई तो पता चला कि ये लोग सिर्फ प्यादे है इनका असली खिलाड़ी तो कोई और है तभी इनके पास जेसीबी, ट्रेक्टर सहित अन्य महंगे उपकरण है और दिल्ली तक इनके तार जुड़े हुए है। यह कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी कि निश्चित रूप से वन विभाग के बड़े अधिकारियों, कार्मिकों और सम्भवतया कुछ राजनीति से जुड़े लोगों का हाथ हो। क्योंकि इस तरीके से वन विभाग की भूमि से पेड़ काटकर उनका कोयला बेचना सामान्य बात नहीं है। अब देखना यह है कि वाकई प्रशासन वन बचाना चाहता है या सिर्फ खानापूर्ति करके छोड़ देता है।
बड़ी साजिश हो सकती है पेड़ काटना
श्रीडूंगरगढ़। सभी बातों से यह बात नजर आ रही है कि इस गैर तरीके से पेड़ों की कटाई करके उसे खेत का रूप दे दिया जाए। दूसरी सम्भावना यह भी है कि पेड़ काटकर वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए जाए और फिर अवैध कॉलोनियां बसा दी जाए। प्रशासन को इस सख्त कार्यवाही की आश्यकता है। इसके साथ ही कुछ लोगों का यह कहना है कि सीधे तौर पर लकड़ी ले जाने पर इन्हें जब्त किया जा सकता है इसलिए इनका यहीं कोयला बनाकर बेचा जा रहा है।
(राजू हिरावत की निर्भीक पत्रकारिता के कारण वन विभाग के अधिकारियों ने कार्यवाही शुरू की है।)




