समाचार-गढ़, श्रीडूंगरगढ़। बजट में श्रीडूंगरगढ़ को तीन बड़ी सौगाते मिली हैं। हम खुशियां भी मना रहे हैं, विधायक का सम्मान भी कर रहे हैं, पर यह चुनावी वर्ष है, इसे भूलना नहीं चाहिए। दिसम्बर में चुनाव हो सकते हैं। छह माह आचार संहिता के चले जाएंगे। केवल तीन माह हाथ में हैं। समय जाते देर नहीं लगती। तीन माह में तो ड्रेनेज- सीवेज योजना का सर्वे तखमीना ही तैयार नहीं होगा। लगता है हमारा पक्का जोहड़ यूं ही सड़ता रहेगा।
ट्रोमा सेंटर तथा बस स्टैंड के लिए भी वन विभाग की भूमि चाहिये। दोनों कार्यों के लिए 12 बीघा भूमि आवंटित करवाने के लिए एक व्यक्ति अपने को इस कार्य में झौंक दे तो ही बात बने। अन्यथा ये केवल घोषणाएं ही रह जाएंगी। पेयजल संकट भोगने के लिए तो हम अभिशप्त हैं ही। न जाने किन अज्ञात कारणों से यह योजना सुस्त हो चली है। नहर का मीठा पानी हमारे लिए सपना हो चुका है। लगता है, इस बार हमें फिर मायूस होना पड़ेगा।
श्रीडूंगरगढ़ की राजनीति का मिजाज बहुत संकीर्ण रहा है। अगर एक राजनेता कोई जन हित की चीज स्वीकृत करवाता है तो दूसरे दल के नेता को इससे कोई अधिक सरोकार नहीं रह जाता। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत कहां रहती है? यहां नेतागिरी करते सभी दलों के 20-25 नेता हैं, जिनके नाम अक्सर हम समाचारों से जानते रहे हैं।
उपरोक्त तीनों चीजें श्रीडूंगरगढ़ के लिए तत्काल आवश्यकता की हैं, पर इनके लिए कोई दूसरे दल के ये 20-25 सभी नेता एकदम खामोश नजर आ रहे हैं, क्योंकि घोषणा स्थानीय विधायक ने जो करवाई है, और इन कार्यों की सफलता वर्तमान विधायक के खाते में जानी है, इसलिए किसी दूसरे नेता की इसमें क्या दिलचस्पी हो सकती है? राजनीति की इस बेमुरव्वति का शिकार यह शहर सदा ही होता रहा है।
शहर में ऐसा एक भी गैर राजनीतिक संगठन भी नहीं है जो यहां के विकास कार्यों की मानिटरिंग कर सके। बिना धणी धोरी के इस शहर की फिक्र करो मित्रों।
बिना धणी धोरी के इस शहर की फिक्र करो मित्रों। यहां की घोषणाएं, हाथ में आकर भी न आना सिद्ध न हो जाए?
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