समाचार -गढ़ 7 अक्टूबर 2023 श्रीडूंगरगढ़। ओंकार सेवा संस्थान, श्रीडूंगरगढ़ की ओर से देवभूमि उतराखण्ड के बदरीकाश्रम में शुक्रवार को सप्तदिवसीय भागवत कथा का प्रारंभ हुआ। श्रीडूंगरगढ़ तथा आसपास के 150 से अधिक धर्म प्रेमी जनों ने युवा संत संतोष सागर जी के मुख से कथा का रसास्वादन किया। प्रारंभ में साहित्यकार चेतन स्वामी ने कहा कि बदरीकाश्रम प्रकृति को प्रतिष्ठा प्रदान करनेवाला तीर्थ स्थल है। भगवान श्री विष्णु ने इस स्थल पर दीर्घ तपस्या की और मां लक्ष्मी ने बेरी के पेड़ का रूप धारण कर तपस्यारत विष्णु को बर्फ, आंधी पानी से संरक्षण दिया। बेरी को ही बदरी कहते हैं। एक पेड़ को प्रतिष्ठा देने के पीछे भगवान का मंतव्य पर्यावरण और प्रकृति को महता देना था।
यहां स्वामीनारायण भवन में आयोजित भागवत के प्रथम दिन संतोष सागर जी ने कहा कि भागवत पुराणों की मुकुटमणि है। यह वह पवित्र भूमि है, जहां बैठकर भगवान वेदव्यास ने अठारह पुराणों की रचना की। भागवत केवल कथाओं का सम्मुच्य भर नहीं है, वह जीने की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
जीवन में आप विचार करना सीख गए तो कथाओं का अभीष्ट पूरा हो जाएगा। चेतना के स्वरूप को जाने बिना जीया गया जीवन, बेहोशी में जीना है। जीवन की तीन कोटियां हैं, देवत्व, मनुष्यत्व और पशुत्व की। आप विचार करो, आप कहां चल रहे हैं? आप केवल सुख भोग करने के लिए नहीं आए हैं। स्वयं के सुख के लिए उद्यम करना भर आपके जीवन का उद्देश्य नहीं रहना चाहिए।
प्रातः बदरीनाथ मंदिर से कलशयात्रा निकली और कथा स्थल तक पहुंची। आज की कथा के मुख्य यजमान श्री बजरंग लाल तोसनीवाल थे। संगीतमय भागवतकथा के इस सप्त दिवसीय आयोजन में श्रद्धालु जनों को कतिपय छोटे- छोटे आध्यात्मिक संकल्प दिलवाए। गायक पुरुषोत्तम स्वामी ने बहुत प्रेरणीय भजन प्रस्तुत किए।
