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राजस्थानी भाषा के ख्यातिलब्ध कथाकार अन्नाराम सुदामा की 99 वीं जन्म जयंती मनाई

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समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़। राजस्थानी भाषा के ख्यातिलब्ध कथाकार अन्नाराम सुदामा का 99 वां जन्म दिन सोमवार को राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति के तत्वावधान में मनाया गया। मध्य बाजार स्थित श्रीडूंगरगढ़ पुस्तकालय में सुदामाजी के राजस्थानी कथा संसार पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए राजस्थानी साहित्य आलोचक डाॅ चेतन स्वामी ने कहा कि सुदामाजी सदैव अपनी विशिष्ट कथा शैली के कारण राजस्थानी कथा साहित्य में अपनी ठावी ठौड़ स्थापित कर पाए। उन्होंने अपनी कहानियों तथा उपन्यासों के जरिए एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार किया। पाठक उनकी नवीन रचनाओं का इंतजार किया करते थे। वे मूलतः कथाकार हैं, इसलिए उनके काव्य में भी कथा निर्देश प्राप्त होते हैं। सुदामाजी के पास पाठक को बांध लेनेवाली सुघड़ भाषा थी। जीवन के आखरी दिनों तक वे रचना कर्म में जुटे रहे। अगला वर्ष सुदामाजी का शताब्दी वर्ष है, उसे त्रिदिवसीय समारोह के रूप में मनाया जाना चाहिए। संगोष्ठी अध्यक्ष श्याम महर्षि ने कहा कि सुदामा जी के साहित्य में लोक की गहरी पैठ है। वे एक सच्चे रचनाकार थे, उन्होंने कभी भी धड़ेबंदी को पसंद नहीं किया। उनका उपन्यास मेवै रा रूंख राजस्थानी की सर्वाधिक पठित कृति है। राजस्थानी की सभी विधाओं में निरंतर लिखने वाले लाडले रचनाकार को मरूधरा सदैव याद रखेगी। साहित्यकार डाॅ मदन सैनी ने बताया कि सुदामा जी ने कभी भी अपने लेखन के बदले पुरस्कार पाने की लालसा नहीं रखी। जन सरोकारों से ओतप्रोत लेखन होने के उपरांत उनके लिए लेखन स्वान्तः सुखाय ही था। कथाकार सत्यदीप ने कहा कि सुदामा जी जैसे कथाकार विरल होते हैं, जिन्होंने अपनी कलम के द्वारा समाज में व्याप्त शोषण को उद्घाटित किया। सामाजिक कार्यकर्ता रामचन्द्र राठी ने कहा कि वे पाठकों के लेखक थे। उनकी रचनाएं पाठक को बांध लेने की क्षमता रखती है। पुस्तकालय मंत्री भंवर भोजक ने कहा कि एक जमाने में लोग चलाकर पुस्तकालय में आया करते और सुदामाजी की पुस्तकें चाव से पढ़ा करते। बजरंग शर्मा व तुलसीराम चौरड़िया ने उपस्थित जनों का आभार प्रकट किया।

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