समाचार गढ़, श्रीडूंगरगढ़। तेरापंथ भवन परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित जनता को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में कभी-कभी युद्ध की स्थिति भी बन जाती है। कभी परिग्रह के लिए तो कभी न्याय के लिए तो कभी अन्य कारणों से युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। शास्त्र में भी युद्ध की बात बताई गई है, किन्तु यह युद्ध किसी बाहरी शत्रु से नहीं, बल्कि स्वयं से स्वयं की आत्मा से युद्ध की बात बताई गई है। किसी युद्ध में कोई दस लाख लोगों को भी जीत ले तो उसकी विजय ही होती है, किन्तु यदि कोई आंतरिक युद्ध में अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर ले तो यह उसकी परम विजय हो जाती है। अपनी आत्मा को शुद्ध, बुद्ध और सिद्ध बनाने के लिए आत्मा पर आठ कर्मों से युक्त आवरण को हटाने के लिए युद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। इनमें भी सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाने वाला मोहनीय कर्म होता है।
संसारी अवस्था की आत्मा मोहनीय कर्मों के कारण अशुद्ध, केवल ज्ञान न होने के कारण अबुद्ध और राग-द्वेष से युक्त होने के कारण आसिद्ध है। शुद्धता, बुद्धता और सिद्धता की प्राप्ति के लिए आदमी को मोहनीय कर्मों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष करने के लिए उपशम, मृदुता, आर्जव-मार्दव आदि के माध्यम से राग-द्वेष को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्मों के क्षय के लिए अणुव्रत भी एक माध्यम है। आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन को भी एक हथियार बताया जो आत्मजयी बनने की दिशा में प्रयोग किया जा सकता है।
आचार्यश्री ने श्रीडूंगरगढ़वासियों को अनेक प्रेरणाएं प्रदान करते हुए कहा कि आज हम अपने गुरुदेव के प्रथम दर्शन वाले क्षेत्र में आया हूं। यहां साध्वियों का सेवाकेन्द्र भी है जो आने का एक कारण बन जाता है। यहां के लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की चेतना बनी रहे, लोगों के भीतर धार्मिकता का विकास होता रहे।
आचार्यश्री के स्वागत में आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति-श्रीडूंगरगढ़ के अध्यक्ष श्री जतन पारख, स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री विजयराज सेठिया, आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ साधना संस्थान के अध्यक्ष श्री भीखमचंद पुगलिया, जैन विश्वभारती के वाइस चांसलर श्री बच्छराज दूगड़ व तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नवीन पारख ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। समस्त तेरापंथ समाज ने गीत के माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभिवंदना की।